Aura Kavach: Ultimate Protection with the Power of Shree Yantra

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श्रीचक्र: आभा-मंडल की सुरक्षा का अद्भुत उपाय

आज चिकित्सा जगत में रोगों को समझने के लिए नए-नए दृष्टिकोण अपनाए जा रहे हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण पहलू है शरीर द्वारा उत्पन्न जैव-ऊर्जा क्षेत्रों (bio-energy fields) का अध्ययन, जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य का माप है, बल्कि मानसिक संतुलन का भी परिचायक है।

किसी भी रूप में नकारात्मकता मानव ऊर्जा क्षेत्र (आभा-मंडल) को नुकसान पहुंचा सकती है। नकारात्मक लोग, उनकी सोच, नकारात्मक स्थान इत्यादि बहुत कुछ नकारात्मक ऊर्जा पैदा करते हैं जो आपसे चिपक सकती है, या आपके घर में जमा हो सकती है और समय के साथ समस्याएं पैदा कर सकती है। हमारा समाज दुश्मनी, ईर्ष्या और पूर्वाग्रहों से भरा हुआ है। इसलिए लोग दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि सभी नकारात्मकए सबसे पहले हमारे आभा-मंडल से टकराती है फिर वह भौतिक शरीर में चली जाती हैं और फिर चक्रों में प्रवेश करती हैं और आखिर में वह रोग – बिमारी का रूप ले लेती है । हमारे समाज में ईर्ष्या, द्वेष, और मतभेद इतने प्रबल हैं कि कई लोग दूसरों को हानि पहुँचाने के प्रयास में जुटे रहते हैं।

“वेदों में आभा-मंडल (AURA) को “दिव्य कांति वलय” भी कहा है – कई जगहों पर इसका उल्लेख किया गया है।
जैसे :-चरक संहिता में कहा है “शरीर के सभी ओर एक अलौकिक पटल जो उसके रंग, चमक और तासीर को प्रतिबिंबित करता है।”

कैसे पहचानें कि आपका आभा-मंडल (Aura) मजबूत है या कमजोर?

आभा-मंडल की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए आपको अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा। आइए समझें कि स्वस्थ और कमजोर आभा के क्या लक्षण होते हैं।

स्वस्थ आभा के लक्षण कमजोर आभा के लक्षण
रात में गहरी और सुकून भरी नींद
ऊर्जा और उत्साह से भरा हुआ शरीर
पूरे दिन सक्रिय और कर्मशील बने रहना
छाती का उभार पेट से अधिक होना
मन में प्रसन्नता और हृदय में आनंद
रचनात्मक कार्यों में रुचि और संलग्नता
आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति का अनुभव
चेहरे पर चमक और आँखों में तेज
सकारात्मक और रचनात्मक विचार
शारीरिक गतिविधियों में सामंजस्य
युवा और ऊर्जावान महसूस करना
सोने में कठिनाई या अनिद्रा
शरीर में दर्द और थकान का अनुभव
ध्यान केंद्रित करने में परेशानी
पेट का उभार छाती से अधिक होना
लगातार तनाव, भय, क्रोध, और भ्रमित रहना
पूरे दिन थकान और सुस्ती महसूस करना
प्रेरणा और उत्साह की कमी
चेहरे की चमक फीकी
नकारात्मक और विध्वंसकारी विचार
शारीरिक असंतुलन या कोई अन्य असामान्यता
उम्र से अधिक वृद्ध महसूस करना

आभामंडल की सुरक्षा और श्रीयंत्र की भूमिका

श्रीयंत्र अपनी आध्यात्मिक और रहस्यमयी शक्तियों के लिए विख्यात है। यह केवल एक पवित्र ज्यामितीय आकृति भर नहीं है, बल्कि इसे मानव आभामंडल और आसपास के वातावरण पर प्रभाव डालने वाला एक शक्तिशाली साधन माना गया है। जब श्रीयंत्र का निर्माण शुद्ध और सटीक तरीके से होता है, तो यह मानव आभा को मजबूत और सुरक्षित करता है, एक सकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र का निर्माण करता है। लेकिन अगर श्रीयंत्र गलत तरीके से या अशुद्ध सामग्री से बना हो, तो यह नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है, जिससे आभा का संतुलन बिगड़ सकता है और वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

“श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं :- When you transcend everything and realize the truth, your inner light becomes visible, which we call Aura.”

श्रीचक्र को क्यों कहते है “सर्व रक्षाकरं चक्रं”

श्रीचक्र में कुल मिलाकर 9, 10 और 16 आवरणों की पूजा की जाती है। इनमें से एक प्रमुख आवरण है “सर्व रक्षाकरं चक्र”, जिसका वर्णन उपनिषदों में इस श्लोक द्वारा किया गया है: “।। सर्व रक्षा करं चक्रं रक्षतान्मे गुण-त्रयम् ।।”

इसका अर्थ है कि, यह यंत्र हमारे शरीर, मन, और आत्मा के सभी प्रमुख पहलुओं की रक्षा करता है।

इसमें शामिल हैं:

  • सभी नाड़ियाँ – इड़ा, पिंगला, और सुषुम्ना।
  • सभी ग्रंथियाँ – ब्रह्मा ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि, और रुद्र ग्रंथि।
  • सभी अवस्था – मन, बुद्धि, और अहंकार।
  • सभी प्रवृर्त्तियाँ – इच्छा, ज्ञान, और क्रिया।
  • सभी शरीर – स्थूल, सूक्ष्म, और कारण शरीर सहित।
  • सभी आभामंडल (Auric Layers)
  • और वह सब कुछ जो आप नहीं जानते:

जब कोई साधक श्रीचक्र की पूजा करता है, तो यह आवरण, जिसका नाम है “सर्व रक्षाकरं चक्र” शरीर और आभामंडल के सभी स्तरों पर रक्षा करता है और उनमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

श्रीचक्र पूजा की विशेषता

श्रीचक्र पूजा की अनोखी विशेषता यह है कि इसके माध्यम से हमारे शास्त्रों में बताए गए सभी “कवच स्तोत्र” सक्रिय हो जाते हैं। अगर कोई व्यक्ति श्रीचक्र के सामने बैठकर कोई भी कवच स्तोत्र (जैसे दुर्गा कवच, देवी कवच, नारायण कवच, राम रक्षा स्तोत्र इत्यादि) का पाठ करता है तभी उसका पूरा प्रभाव मिल सकता है अन्यथा सूखे हवन कुंड में लकड़ी के टुकड़े डाल ने जैसा परिणाम मिलता है।

इसका प्रभाव साधक को हर प्रकार की नकारात्मकता से सुरक्षा प्रदान करता है और जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और शांति लाता है।

इस प्रकार श्रीयंत्र और श्रीचक्र पूजा न केवल आध्यात्मिक प्रगति का साधन है, बल्कि यह हमारे शरीर, मन, और वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भरकर जीवन को सार्थकता प्रदान करती है।

Content by: The Spiritual Advisors Team